first_ad

Saturday, 29 April 2017

सायना नेहवाल की जीवनी | Saina Nehwal Biography In Hindi


पूरा नाम – सायना हरवीर सिंह  नेहवाल
जन्म   – 17, मार्च 1990
जन्मस्थान– हिसार
माता   –  उषा रानी  नेहवाल
पिता   – हरवीर सिंह  नेहवाल

सायना नेहवाल की जीवनी / Saina Nehwal Biography In Hindi

सायना नेहवाल भारतीय बैडमिंटन खिलाडी है. वर्तमान में वह दुनिया की सबसे अच्छी महिला बैडमिंटन खिलाडी है तथा इस मुकाम तक पहोचने वाली पहली भारतीय महिला है. ओलंपिक्स खेलो में बैडमिंटन में मेडल जितने वाली वह पहली भारतीय है. 4 अगस्त 2012 को लन्दन ओलंपिक्स में सायना ने ब्रोंज मेडल जीता था. प्रकाश पादुकोण के बाद वह पहली भारतीय और पहली भारतीय महिला है जो नंबर एक अंतरराष्ट्रिय बैडमिंटन खिलाडी बनी. इसके अलावा वह वर्ल्ड जूनियर बैडमिंटन चैंपियनशिप और सुपर सीरिज टूर्नामेंट जीतने वाली वह पहली भारतीय है. सायना को ओलंपिक्स गोल्ड क्वेस्ट से काफी सहायता मिली.
सायना को द्रोणाचार्य अवार्ड विजेता एस.एम. आरिफ ने प्रशिक्षित किया था और बाद में सितम्बर 2014 तक उन्हें पुल्लेला गोपीचंद ने प्रशिक्षित किया था. सायना कई बार बैडमिंटन में राष्ट्रिय चैंपियन भी बन चुकी है और फिलहाल पूर्व भारतीय बैडमिंटन चैंपियन और राष्ट्रिय प्रशिक्षक विमल कुमार से वह प्रशिक्षण ले रही है. इंडियन बैडमिंटन लीग के हैदराबाद हॉटशॉट्स के लिये सायना खेलती है. उन्होंने 2015 की BWF वर्ल्ड चैंपियनशिप में सिल्वर जीता था और ऐसा करने वाली वह पहली महिला बनी थी.
सायना नेहवाल का व्यक्तिगत जीवन / Saina Nehwal Personal Life
सायना नेहवाल, हरवीर सिंह और उषा रानी की दूसरी बेटी है. हिसार के हिंदु-जाट परीवार में सायना का जन्म हुआ. उनके पिता CCS HAU में काम करते है. CCS HAU, हिसार में ही सायना ने अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की. बाद में उनका परीवार हैदराबाद चला गया था. नेहवाल ने कराटे में ब्राउन बेल्ट भी जीता है. सेना ने अपनी बारहवी हैदराबाद के सेंट एंस कॉलेज से पूरी की थी.
सायना नेहवाल के पुरस्कार / Saina Nehwal Awards
1) अर्जुन पुरस्कार (2009)
2) राजीव गाँधी खेल रत्न (2009-2010)
3) पद्म श्री (2010)
सायना नेहवाल ने विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप के महिला एकल मुकाबले में रजत पदक जीतकर भारत को गौरवान्वित किया है. विश्व चैंपियनशिप के इतिहास में सायना भले ही भारत को स्वर्ण पडल दिलाने में विफल रही पर वे उन भारतीय खिलाडियों के लिये प्रेरक बनकर जरुर उभरी है, जो खेल की दुनिया में कोई मुकाम हासिल करना चाहती है. यदि खेल में ईमानदारी से गंभीर प्रयास हो तो एक नहीं अनेक सायना और सानिया सरीखी देख का गौरव बढ़ाने आगे आ सकती है. जब कभी भी सायना से उनकी चाह के बारे में पूछा जाता तो वह हमेशा यही कहती, “मै हमेशा से एक ओलिंपिक पदक चाहती हु और भारत के राष्ट्रिय ध्वज को मंच पर हमेशा से उपर जाते हुए देखना चाहती हु.”
निश्चित ही एक महिला बैडमिंटन खिलाडी द्वारा कही गयी ये बाते हमें देश के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित करती है.
Please Note :- अगर आपके पास Saina Nehwal Biography In Hindi मैं और Information हैं, या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो तुरंत हमें कमेंट मैं लिखे हम इस अपडेट करते रहेंगे. धन्यवाद

Friday, 28 April 2017

विनोद खन्ना का जीवन परिचय | Vinod Khanna biography in hindi

Vinod Khanna biography in hindi विनोद खन्ना भारतीय सिनेमा में वह सितारा है, जो सिनेमा जगत के आकाश में हमेशा ध्रुवतारे की तरह रौशन रहे. विनोद खन्ना ने कई फ़िल्मों में अभिनय किया है. इन्हें प्रायः हर तरह की फ़िल्मों में अभिनय करने का मौक़ा मिला. शुरूआती समय में इन्हें कई छोटे मोटे और नाराकात्मक रोल प्राप्त हुए, किन्तु बाद में इनके खाते में कई बड़ी और सुपरहिट फिल्मे शुमार हुईं. शुरूआती समय में इन्हें अपने जीवन काल में 2 बार फ़िल्मफेयर आवार्ड प्राप्त हो चूका है. इन्होने अभिनय के साथ साथ कालांतर में राजनीति में भी अपना पांव जमाया और गुरदासपुर से सांसद भी रहे.


विनोद खन्ना का जन्म और शुरूआती जीवन (Vinod Khanna early life)

विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर 1946 में ब्रिटिश भारत के पेशावर, जो कि अब पाकिस्तान में है, में हुआ था. इनके पिता का नाम किशनचंद खन्ना और माता का नाम कमल खन्ना था. इनके पिता एक बहुत बड़े व्यापरी थे, जिनका व्यापार टेक्सटाइल, डाई और रसायन बाज़ार में फैला हुआ था. विनोद के जन्म के बाद कुछ ही समय में भारत का बंटवारा हो गया और इनके पिता अपने पूरे परिवार के साथ मुंबई आ गये. 

विनोद खन्ना की शिक्षा (Vinod Khanna education)

विनोद खन्ना की शुरूआती पढाई मुंबई के सैंट मैरी स्कूल में हुई. इस स्कूल में इन्होने दुसरी क्लास तक पढाई की. इसके बाद इनके पिता ने इनका दाखिला दिल्ली के सैंट ज़ेवियर हाई स्कूल में करा दिया. इसके कुछ ही समय बाद इनका पूरा परिवार दिल्ली स्थानांतरित हो गया. सैंट ज़ेवियर स्कूल के बाद इन्होने दिल्ली में ही स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल से पढाई की. साल 1960 में इनका पूरा परिवार वापिस मुंबई आ गया. इस बार विनोद की बाक़ी की पढाई नासिक स्थित बार्नेस स्कूल से हुई. हाई स्कूल के बाद इन्होने मुंबई स्थित sydenham कॉलेज से कॉमर्स से ग्रेजुएशन की पढाई पूरी की. अपनी पढाई के दौरान इन्होने सोलहवां साल और मुग़ले-आज़म जैसी फ़िल्में देखीं और इन्हें अहसाह हुआ कि यही इनका आखिरी मुकाम है. 

विनोद खन्ना का पारिवारिक जीवन (Vinod Khanna family)
साल 1971 में विनोद खन्ना का विवाह गीतांजलि से हुआ. गीतांजलि से इन्हें दो बच्चे हुए, जिनका नाम अक्षय खन्ना और राहुल खन्ना था. इसके बाद ही विनोद खन्ना की रूचि आध्यात्म की तरफ होने लगी. ये ओशो रजनीश से संलग्न हो गये और ओशो के अमेरिका स्थित आश्रम में रहते हुए रजनीश के लिए माली का काम करने लगे. एक लम्बे समय तक भारत में न रहे की वजह से इनके वैवाहिक रिश्ते में दरार आने लगे और सन 1985 में ये रिश्ता हमेशा के लिए टूट गया. इस विवाह के टूटने के पांच साल बाद सन 1990 में इन्होने कविता से विवाह किया. कविता से भी इन्हें दो बच्चे हुए जिनका नाम साक्षी और श्रद्धा है.
विनोद खन्ना का करियर एवं फिल्मोग्राफी (Vinod Khanna career and filmography)

विनोद खन्ना अपने युवावस्था में बहुत ही आकर्षक थे. इनकी क़द काठी भी ठीक थी. अतः बहुत जल्दी इन्हें काम मिलने लगे. विनोद खन्ना ने अदुर्थी सुब्बा राव द्वारा निर्देशित सुनील दत्त की फ़िल्म ‘मन के मीत’ से अपनी फ़िल्म सफ़र की शुरुआत की. इस फ़िल्म में इन्हें विलन का किरदार दिया गया था और नायक की भूमिका में सोम दत्त थे. ये फ़िल्म एक तमिल फ़िल्म ‘कुमारी पेन’ की रिमेक थी. इसके साथ ही इन्होने कई ऐसी फ़िल्मों में नकारात्मक किरदार को निभाया. साल 1968 से 1971 के बीच रिलीज़ हुई फ़िल्मों में ‘पूरब और पश्चिम’, ‘सच्चा झूठा’, ‘आन मिलो सजना’, ‘मस्ताना’, ‘मेरा गाँव मेरा देश’ आदि में इन्होने नकारात्मक किरदार निभाते हुए इंडस्ट्री में अपनी जगह बनायी.
  • साल 1971 से 1982 के दौरान
विनोद खन्ना उन बहुत कम अभिनेताओ में हैं, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत विलेन के किरदार से की, और कालांतर में नायक के रूप में स्थापित हुए. हालाँकि फ़िल्म इंडस्ट्री में ये बहुत ही मुश्किल है. विनोद खन्ना को सन 1971 में आई फ़िल्म ‘हम, तुम और वो’ में लीड रोल में काम करने का मौक़ा मिला. इस सिनेमा में वे भारती विष्णुवर्धन के साथ नज़र आये. इसी साल इन्हें गुलज़ार साहब की फ़िल्म ‘मेरे अपने’ में भी देखा गया. ये फ़िल्म एक बंगाली फ़िल्म ‘आपनजन’ की रीमेक थी. इसके बाद सन 1973 में इन्हें पुनः गुलज़ार द्वारा लिखित और निर्देशित फ़िल्म ‘अचानक’ में देखा गया. इस फ़िल्म को लोगों और फ़िल्म समीक्षकों द्वारा खूब सराहा गया.
फ़िल्म ‘हम, तुम और वो’ में विनोद खन्ना का रोमांटिक रूप लोगों को खूब पसंद आया और उसके बाद कई फिल्मों में विनोद खन्ना का ये रूप देखा गया. साल 1973 से 1982 के दौरान इन्होने कई फ़िल्मों में सोलो हीरो की भूमिका निभाई. इन फ़िल्मों में फरेबी, हत्यारा, क़ैद, ज़ालिम, इनकार आदि है. इन फिल्मो ने लोगों के बीच इनकी अलग पहचान कायम कर दी. इन फ़िल्मों को करने के दौरान इनके साथ मौसमी चटर्जी, लीना चंदावरकर, विद्या सिंह आदि अभिनेत्रियाँ काम करती हुईं दिखीं. इन फ़िल्मों के बाद विनोद खन्ना के खाते में कई ब्लॉकबस्टर फ़िल्में भी आयीं. इन फ़िल्मों में गद्दार, आप की खातिर, मैं तुलसी तेरे आँगन की, खून की पुकार, शौक़, आधा दिन और आधी रात, आरोप, जेल यात्रा, ताक़त, दौलत आदि फिल्में की. कई अभिनेता ऐसे होते हैं, जो एक बार हीरो वाले किरदार की लाइन पकड़ लेने पर सपोर्टिंग रोल में नहीं आते, किन्तु विनोद खन्ना ने कई सपोर्टिंग रोल भी निभाए. इन सपोर्टिंग रोल से इनके स्टारडम में चार चाँद लग गये. सपोर्टिंग रोल करने के दौरान इन्होने आन मिलो सजना, सच्चा झूठा, कुदरत, राजपूत, प्रेमकहानी आदि फ़िल्मों में राजेश खन्ना के लिए सपोर्टिंग रोल में नज़र आये.
विनोद खन्ना ने कई मल्टी हीरो फ़िल्में भी की. मल्टी हीरो यानि एक साथ एक से अधिक सुपरस्टार का होना. इन फ़िल्मों में भी विनोद ने अपने अभिनय की गहरी छाप छोड़ी. इन फिल्मों में शंकर शम्भू, चोर सिपाही, एक और एक ग्यारह, हेरा- फेरी, खून पसीना, अमर अकबर अन्थोनी, ज़मीर, परवरिश, मुक़द्दर का सिकंदर, हाथ की सफ़ाई, आखिरी डाकू आदि में इनके काम को आज भी याद किया जाता है. सुपरस्टार जीत्रेन्द्र के साथ इनकी फिल्मो में एक हसीना दो दीवाने, एक बेचारा, परिचय, इंसान, अनोखी अदा और जन्म कुंडली है. विनोद खन्ना के अपने करियर में एक लम्बा समय बेहतर स्टारडम के साथ गुज़ारा है. इनके करियर में ऐसा दौर भी आया जब इन्हें जीतेन्द्र, अमिताभ, ऋषि कपूर आदि सुपरस्टार से भी अधिक पैसे दिए गये. 
  • साल 1982 से 1986 के दौरान
इस दौरान विनोद खन्ना की रूचि आध्यात्म की तरफ गयी और वे फ़िल्म इंडस्ट्री से कुछ समय के लिए कट गये. इस दौरान इन्होंने किसी भी फ़िल्म में काम नहीं किया.
  • साल 1987 और इसके बाद
साल 1987 में पुनः एक बार विनोद खन्ना ने फिल्मो की तरफ रुख किया. इस दौरान इन्होने अपना रुका हुआ फ़िल्मी सफ़र पुनः फ़िल्म इन्साफ से शुरू किया. इस फिल्म में इनके साथ डिंपल कपाडिया नज़र आयीं. इसके बाद इन्हें कई रोमांटिक किरदार भी करने के मौके मिले, लेकिन अधिकतर समय इन्हें एक्शन थ्रीलर ही मिलते थे. रोमांटिक फिल्मो में इस दौरान इन्हें जुर्म और चांदनी फिल्म मिली थी. नब्बे के दशक के दौरान इन्हें मुक़द्दर का बादशाह, सीआईडी, रिहाई, लेकिन और हमशकल में देखा गया. इस समय कई मल्टी स्टार एक्शन फ़िल्में बन रही थीं. ऐसी फ़िल्मों में विनोद खन्ना का होना जैसे अनिवार्य हो गया था. वे फिल्मे आखिरी अदालत, खून का क़र्ज़, महासंग्राम, पुलिस और मुजरिम, क्षत्रिय, इंसानियत के देवता, एक्का राजा रानी, इना मीका डीका आदि थीं. साल 1997 में विनोद खन्ना ने अपने बेटे अक्षय खन्ना को हिमालय पुत्र में अपने साथ अभिनय के लिए तैयार किया. ऐसी फ़िल्मों में इनकी जोड़ी मिनाक्षी के साथ खूब देखी गयी. लोगों ने भी इस जोड़ी को खूब पसंद किया. इसके बाद इन्हें कुछ समय पहले सलमान खान के वांटेड, दबंग आदि फ़िल्मों में देखा गया था.
विनोद खन्ना का राजनीतिक करियर (Vinod Khanna political career)
सन 1997 में विनोद खन्ना ने राजनीति की तरफ अपना रुख किया. इस साल इन्होने भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन किया और सक्रीय राजनीति से जुड़ गये. इसके 2 साल बाद सन 1999 पंजाब के गुरदासपुर से इन्होने पार्टी के लिए चुनाव लड़ा और इस सीट पर अपनी जीत दर्ज कराई. कालांतर में इसी सीट से इन्होंने पुनः चुनाव जीता. साल 2002 में भारत सरकार के यूनियन मिनिस्टरी ऑफ़ कल्चर और टूरिज्म के मंत्री बने. बहुत जल्द ही छः महीने के बाद ये मिनिस्ट्री ऑफ़ एक्सटर्नल अफेयर्स तक पहुँच गये. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में हालाँकि ये गुरुदासपुर से हार गये, किन्तु पुनः साल 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में इन्हें अपनी सीट से पुनः जीत मिली.
विनोद खन्ना की मृत्यु (Vinod Khanna death)
विनोद इस दौरान कैंसर से जूझ रहे थे. इन्हें सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में भर्ती कराया गया था. इस साल के आरम्भ में हालांकि इनके स्वस्थ होने की खबर आई थी, किन्तु बीमारी लगातार बढती गयी. अपने अस्वस्थता के समय इनके पास इनका पूरा परिवार मौजूद था. अंततः 27 अप्रैल 2017 को  इनका देहांत हो गया.

विनोद खन्ना के अवार्ड और उपलब्धियां (Vinod Khanna achievement award)
विनोद खन्ना को उनके अभिनय के लिए कई बड़े अवार्ड्स हासिल हुए. यहाँ पर इन अवार्डस के विषय में दिया जा रहा है.
  • साल 1975 में फ़िल्म ‘हाथ की सफ़ाई’ के लिए फ़िल्मफेयर अवार्ड बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के लिए मिला.
  • साल 1999 में फ़िल्मफेयर अवार्ड में लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया.
  • साल 2001 कलाकार अवार्ड की तरफ से लाइफ़टाइम अचिवेमेंट अवार्ड दिया गया.
  • साल 2005 में स्टारडस्ट अवार्ड की तरफ से रोल मॉडल ऑफ़ द इयर अवार्ड दिया गया.
  • साल 2007 में जी सिने अवार्ड की तरफ से लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया.
इस तरह विनोद खन्ना भारतीय सिनेमा के रास्ते में एक तरह से ‘मील के पत्थर’ के रूप में स्थापित हो गये हैं. युवा अभिनेता इनकी फ़िल्मों से बहुत कुछ सीख रहे हैं. विनोद खन्ना ने अपने जीवन में राजनीति भी की, किन्तु किसी तरह का राजनैतिक विवाद में इनका नाम नहीं आया. अर्थात राजनीति में भी इन्होने कला की ही तरह ईमानदारी बरती.

Thursday, 27 April 2017

Paytm Founder Vijay Shekhar Sharma Ki Success Story In Hindi

Paytm Founder ki success story, भारत के ऐसे कई बिसनेस मैन जिन्होंने कुछ अलग करने कि ठानी और उन्होंने कर दिखाया | जो लोग रिस्क लेते है वही जीवन में सफ़ल होते है | अगर आपको बड़ा बनना है तो आपको रिस्क लेना ही पड़ेगा | क्योकि आज तक जितने  भी लोग सफ़ल हुए है उन्होंने असफलता कि चिंता नहीं की | आज हमारा देश आगे बढ़ रहा क्योंकि यहाँ कुछ ऐसे लोग जो कुछ अलग करने का जूनून रखते है |

आज इस  article में हम उस बिसनेस मैन कि story बताये जिसने देश में छुट्टे पैसे कि समस्या को देख कर पंद्रह हज़ार करोड़ की कंपनी कड़ी कर दी | आज लगभग छुट्टे पैसे कि समय खत्म हुई है या आने वाले दिनों में ख़त्म हो जाएगी |

Image credit – yosuccess

जी हाँ , यह story है paytm के फाउंडर  विजय शेखर शर्मा की| आज paytm देश के नामी कंपनियों में से एक है| शुरुआत में विजय शेखर के इस आईडिया को उनकी फैमिली ने सपोर्ट नहीं किया | लेकिन विजय शर्मा ने हार नहीं मानी और कर दिखाया |
लहरों से डर कर नोका पार नहीं होती ,और कोशिश करने वालों कि कभी हार नहीं होती |

Paytm Founder की सक्सेस story

जीवन परिचय –

नाम           –     विजय शेखर शर्मा
जन्म स्थान –    अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश ,भारत
पत्नी           –   मृदुला शर्मा

शिक्षा –

विजय शर्मा शुरू से अपनी कक्षा के मेधावी छात्र थे | उन्होंने अपनी स्कूली पढाई महज़ 13 वर्ष की उम्र में ही पूरी कर ली थी | 15 वर्ष कि उम्र में विजय इंजीनियरिंग की पढाई के लिए दिल्ली चले गये | उन्हों इंगलिश आती इसलिए में बहुत परेशानी हुई |

कैरियर –

विजय ने पढाई पूरी करने के बाद एक नौकरी कि जिससे उन्हें 10000 सैलरी मिलती थी | विजय जब कॉलेज के दिनों में अपनी इंग्लिश इम्प्रूव करने के लिए अंग्रेजी  मैगज़ीन और अख़बार पढ़ा करते थे | एक दिन विजय ने  मैगज़ीन मेंsilicon valley के बारे में पढ़ा और अपनी नौकरी छोड़ कुछ अलग करने कि थान ली | इसके बाद विजय ने एक वन 97 नाम से एक कंपनी शुरू कि जो बाद में paytm में बदल गई |

 

कुछ विशेष बाते विजय शर्मा और Paytm के बारे में –

विजय शर्मा के पिताजी एक टीचर थे |
विजय कि दो बडी बहने और एक छोटा भाई है |
विजय शुरुआत में इंग्लिश में कमज़ोर था |
paytm को जुलाई 2015 में क्रिकेट की title स्पोंसरशिप मिली, जिसके लिए 200 करोड़ रुपय से भी ज्यादा ख़र्च करने पडे |
एक समय ऐसा था जब उन उनसे कोई लड़की शादी करने को तैयार नहीं थी |

paytm बहुत जल्द अपना payment बैंक शुरू करेगा।

उपसंहार –

विजय शर्मा के जीवन संघर्ष  पर जितना लिखे उतना कम है , कई बार तो उन्होंने दो कप चाय में ही पूरा दिन निकालना पड़ा |  अगर आप भी कुछ बनना चाहते तो इस paytm founder  सक्सेस story से प्रेरणा ले सकते है , हमारे रस्ते में कितनी भी मुसीबते आये हमें हार नहीं माननी चाहिए |
उम्मीद करते है आपको ये story अच्छी लगी होगी , कृपया इसे आगे भी शेयर करें | इस article से सम्बंधित कोई विचार है तो comment बॉक्स में ज़रूर लिखें |

Wednesday, 26 April 2017

विजय माल्या की जीवनी / Vijay Mallya Biography In Hindi


जन्म: 18 दिसंबर 1955

व्यवसाय/कार्य/पद: यूबी समूह के अध्यक्ष, राज्यसभा सांसद
विजय माल्या एक भारतीय व्यवसायी और राजनेता हैं। वे यू बी ग्रुप के अध्यक्ष हैं जिसका कारोबार शराब, उड्डयन, उर्वरक और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में फैला हुआ है। माल्या राज्य सभा से सांसद भी हैं। वो फार्मूला वन के सहारा फ़ोर्स इंडिया टीम के साझा मालिक हैं। इस टीम के दूसरे मालिक सुब्रत रॉय सहारा हैं। इसके साथ-साथ माल्या इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के ‘रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर”, I-League टीमों जैसे मोहन बागान AC और ईस्ट बंगाल FC के भी मालिक हैं। अपने रंगीले  और बेबाक जीवन शैली के लिए प्रसिद्द विजय माल्या के धन का मुख्य श्रोत शराब का कारोबार ही है।

प्रारंभिक जीवन
माल्या का जन्म 18 दिसंबर 1955 को हुआ था। वे मूलतः कर्नाटक में मंगलौर के बँटवाल शहर से हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के ला मार्टिनियर बॉयज़ कॉलेज से हुई और सेंट जेवियर कॉलेज, कोलकाता, (कोलकाता विश्वविद्यालय) से उन्होंने डिग्री की पढाई की।

कैरियर/व्यवसाय
वर्ष 1973 में अपने पिता की अकस्मात् मृत्यु के बाद विजय मात्र 28 साल के उम्र में UB ग्रुप के अध्यक्ष बन गए।  तब से लेकर अब तक UB ग्रुप एक बहुराष्ट्रीय समूह की तरह उभरा है जिसके अंतर्गत लगभग 60 कंपनियां हैं। 1973 से लेकर 1999 तक ग्रुप का टर्नओवर लगभग 64 प्रतिशत बढ़ा। विजय ने समूह के तमाम कंपनियों को मजबूत बनाया और घाटे में चल रही कंपनियों को या तो बेच दिया या बंद कर दिया। उन्होंने अपना पूरा ध्यान ग्रुप के मुख्य व्यवसाय शराब पर लगाया। उन्होंने अपने मुख्य धंधे को न सिर्फ कंसोलिडेट किया बल्कि कई कंपनियों का अधिग्रहण कर अपने व्यवसाय को और डाइवर्सिफाई किया।
उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों के कई कंपनियों का अधिग्रहण किया। इनमें प्रमुख हैं बर्जर पेंट, बेस्ट, क्रॉम्पटन, मालाबार कैमिकल्स एंड फर्टिलाइज़र्स। उन्होंने मीडिया क्षेत्र में भी कुछ अधिग्रहण किये जिनमे प्रमुख हैं ‘द एशियाई एज’ और ‘सिने ब्लिट्ज’।

UB ग्रुप की मुख्य कंपनी ‘यूनाइटेड स्पिरिट्स लिमिटेड’ विजय माल्या के नेतृत्व में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शराब बेचने वाली कंपनी बन गयी। वर्ष 2012 में UB ग्रुप को ‘यूनाइटेड स्पिरिट्स’ का प्रबंध नियंत्रण ब्रिटेन की दिग्गज शराब कंपनी ‘डियाजिओ’ को देना पड़ा।
वर्ष 2005 में विजय माल्या ने किंगफ़िशर एयरलाइन्स की शुरुआत की। यह भारत में पहली एयरलाइन थी जिसने सभी नए विमानों के साथ काम शुरू किया। इसके साथ-साथ, किंगफिशर एयरलाइंस, एयरबस ए 380 खरीदने वाली भारत की पहली एयरलाइन बन गयी। आर्थिक कुप्रबंधन के कारण कंपनी कई सालों तक जबरदस्त घाटे में रही और फिर दिवालिया हो गयी जिसके कारण वर्ष 2013 में इसे बंद करना पड़ा।
माल्या को निजी तौर पर खेल-कूद में बहुत दिलचस्पी है। मोटरस्पोर्ट से उनका ख़ास लगाव है। 1970 और 1980 के दशक में तो उन्होंने कई ट्रैक रेसिंग प्रतियोगितायों में हिस्सा भी लिया। वे शोलावरम ग्रां प्री (1980/1981) और कोलकाता ग्रां प्री (1979) के विजेता भी रहे। इसके अलावा उन्होंने यूरोप के कई क्लासिक रैलियों में भी हिस्सा लिया। रेसिंग के अपने इसी शौक के चलते उन्होंने ‘स्पाइकर 1″ F1 टीम खरीदा और इसका नाम बदल कर ‘फ़ोर्स इंडिया F1′ रख दिया। वर्तमान में इस टीम के दो मालिक हैं – एक खुद विजय माल्या और दुसरे सहारा ग्रुप के सुब्रत रॉय। उनको घोड़े पालने और घुड़दौड़ का भी  शौक है।
माल्या अपने राज्य कर्नाटक से राज्य सभा के सांसद भी हैं और संसद के कई महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य भी रह चुके हैं।
विजय माल्या को उनके व्यवसाय, राजनीती और खेलों से लगाव के अलावा एक और शौक के लिए जाना जाता है – ऐतिहासिक महत्व की वस्तुवों को वापस देश में लाना। वो टीपू सुल्तान और महात्मा गांधी के जीवन से जुडी हुई ऐतिहासिक महत्व की चीज़ों को नीलामी में खरीद कर वापस भारत लाने में सफल रहे हैं। इन वस्तुओं में प्रमुख है टीपू सुल्तान की तलवार जिसे उन्होंने लंदन में एक नीलामी में £ 175,000 में खरीदा।
माल्या का UB ग्रुप कई सारे प्रतियोगिताएं और टीमों को भी प्रायोजित करता है। उनमें मुख्य इस प्रकार हैं:
  • सिग्नेचर गोल्फ टूर्नामेंट (गोल्फ टूर्नामेंट )
  • मोहन बागान AC (I-League टीम)
  • किंगफ़िशर डर्बी टीम (हॉर्स रेसिंग)
  • ईस्ट बंगाल क्लब (I-League टीम)
  • रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर (आई पी एल टीम)
  • फ़ोर्स इंडिया (फार्मूला वन कार रेसिंग टीम)
  • मक्डॉवेल इंडियन (हॉर्स रेसिंग)

Friday, 21 April 2017

आलिया भट्ट की जीवनी हिंदी में | Alia Bhatt Biography in Hindi


आलिया भट्ट भारतीय फिल्‍म अभिनेत्री हैं जो कि बॉलीवुड फिल्‍मों में दिखाई देती हैंा वे आज के समय की अग्रणी अभिनेत्रियों में से एक हैंा वे अपने बयानों की वजह से खासा चर्चा में रहती हैंा वे कई विज्ञापनों में भी दिखाई देती हैंा
पृष्‍ठभूमि-
आलिया भट्ट का जन्‍म मुंबई में हुआ थाा उनके पिता का नाम मुकेश भट्ट और मां का नाम सोनी राजदान हैा उनका परिवार फिल्‍म इंडस्‍ट्री में लंबे समय से काम कर रहा हैा
पढ़ाई-
आलिया की पढ़ाई जमनाबाई नर्सी स्‍कूल से हुई थीा
करियर-
उनके फिल्‍मी करियर की शुरूआत बाल कलाकार के तौर पर फिल्‍म 'संघर्ष' से हुई थी जिसमें उन्‍होंने छोटी प्रीति जिंटा का रोल अदा किया था लेकिन मुख्‍य अभिनेत्री के तौर पर उनके करियर की शुरूआत फिल्‍म 'स्‍टूडेंट ऑफ द ईयर' से हुई थीा

आमिर खान खान की जीवनी | Aamir Khan Biography In Hindi


पूरा नाम   –  मुहम्मद आमिर हुसैन खान
जन्म        –  14 मार्च 1965
जन्मस्थान  –  मुंबई. महाराष्ट्र
पिता        –  ताहिर हुसैन
माता       –  जीनत हुसैन

आमिर खान खान की जीवनी / Aamir Khan Biography In Hindi

आमिर खान / Aamir Khan एक भारतीय फिल्म अभिनेता, निर्देशक, निर्माता, टेलीविज़न हस्ती, सामाजिक कार्यकर्त्ता, चलचित्र लेखक और मानव प्रेमी है. फिल्म जगत में अपने सफल करियर के बल पर उन्होंने खुद को हिंदी फिल्म जगत का सबसे मशहूर कलाकार बनाया. उनके करियर में उन्हें कई सारे पुरस्कारों से नवाज़ा गया है, जिसमे चार राष्ट्रिय फिल्म पुरस्कार और सात फिल्मफेयर अवार्ड भी शामिल है. भारत सरकार की तरफ से उन्हें 2003 में पद्मश्री और 2010 में उन्हें पद्म भूषण से भी नवाज़ा गया था.
खान का जन्म ताहिर हुसैन (फिल्म निर्माता) और जीनत हुसैन के बड़े बेटे के रूप में मुंबई में 14 मार्च 1965 को हुआ था. खान के बहोत से रिश्तेदार फिल्म जगत के सदस्य थे. जिनमे उनके अंकल नासिर हुसैन का भी समावेश था. कहा जाता है की अपनी दादी की वजह से वे दर्शनशास्त्री अबुल कलाम आजाद के भी रिश्ते में आते थे. खान अपने चार भाई-बहनों में सबसे बड़े है, उनके एक भाई है, फैसल खान और दो बहने, फरहत और निखत खान. उनका भतीजा, इमरान खान एक आधुनिक हिंदी फिल्म अभिनेता है.
आमिर खान बच्चपन में ही दो भूमिका में परदे पर आये थे. 8 साल की आयु में, नासिर हुसैन के निर्देशन वाली म्यूजिकल फिल्म यादो की बारात (1973) में उन्होंने अभिनय किया था. उसी साल उन्होंने अपने पिता द्वारा निर्मित मदहोश में भुमिका अदा की थी. खान ने बाद में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए जे.बी. पेटिट स्कूल जाना शुरू किया और बाद में 8वी कक्षा तक बांद्रा की सेंट एंस स्कूल से उन्होंने शिक्षा ग्रहण की. और महिम की बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल से 9वी और 10वी की शिक्षा ग्रहण की. खान को बचपन से ही टेनिस में बहोत रूचि थे, उन्हें टेनिस खेलना बहोत पसंद था. उनके शिक्षको का हमेशा से ही यह कहना था की, खान का ध्यान पढाई में कम और खेलने में ज्यादा है. मुंबई के नरसी मोंजी कॉलेज से उनकी 12 वी की शिक्षा प्राप्त की. खान ने अपने बचपन को आर्थिक परेशानिया होने की वजह से बहोत ‘कठिन’ बताया. उस समय उनके पिता को आर्थिक मंदी से होकर गुजरना पड़ रहा था, खान ने बताया की उनके पिता ने जिन-जिन से भी उधार ले रखा था उनके तक़रीबन दिन में 20-30 फ़ोन आते रहते थे. और खान को हमेशा से ही यह डर लगा रहता था की कही फीस ना देने की वजह से स्कूल से निकाला न जाये.
16 साल की आयु में, आमिर खान / Aamir Khan ने एक प्रयोग किया और 40 मिनट की एक साइलेंट फिल्म (मूक फिल्म) बनाई. जिसे परानोईया का नाम दिया गया, यह फिल्म उनके स्कूल के दोस्त आदित्य भट्टाचार्य के निर्देशन में ही बनाई गयी थी. इस फिल्म को बनाने में श्रीराम लागू ने धन देकर उनकी सहायता की. जो भट्टाचार्य को अच्छी तरह से जानते थे लागू ने उन्हें हजारो रुपयों की सहायता की. खान के माता-पिता उस समय अपने अनुभव के आधार पर खान द्वारा लिए गये इस निर्णय के विरोध में थे. वे चाहते थे की फिल्मजगत में आने की बजाये उनका बेटा कोई डॉक्टर या इंजिनियर बने. और अंततः फिल्म की शूटिंग पूरी हो ही गयी. फिल्म में आमिर खान अपने सह-अभिनेता नीना गुप्ता और विक्टर बनर्जी के साथ मुख्य भूमिका में थे. उस समय भट्टाचार्य ने कहा था की उस फिल्म ने उसके करियर को एक नयी दिशा प्रदान की थी, और नया अनुभव उन्हें उस फिल्म से प्राप्त हुआ था.
खान बाद में अवांतर नाम के एक थिएटर समूह में शामिल हो गये थे, जहा एक साल तक वे परदे के पीछे की भुमिका निभाते रहे. उन्होंने अपने अभिनय की शुरुवात कंपनी के ही एक गुजराती नाटक, केसर बिना में छोटी सी भुमिका अदा कर के की. बाद में उन्होंने दो हिंदी नाटक और एक अंग्रेजी नाटक में अभिनय किया. और अपनी हाई-स्कूल की पढाई पूरी करने के बाद उन्होंने पढाई छोड़ने का निर्णय लिया, और अपने माता-पिता के निर्णय के विरुद्ध जाकर वे निर्देशक नासिर हुसैन के सहायक बने. जिन्होंने उस समय मंजिल-मंजिल (1984) और ज़बरदस्त (1985) का निर्माण किया था.

आमिर खान करियर – Aamir Khan Career

आमिर खान  सबसे पहले एक बाल कलाकार के रूप में फिल्म जगत में आये. और बाद में उनका पहला फिल्म अभिनय 1984 की होली फिल्म शुरू हुआ था. उन्हें अपने भाई मंसूर खान के साथ फिल्म क़यामत से क़यामत तक (1988) के लिए अपनी पहली कमर्शियल सफलता मिली और इसके लिए उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ट मेल नवोदित पुरस्कार भी दिया गया. उस समय उनकी एक और थ्रिलर फिल्म राख (1989) ने कई पुरस्कार अपने नाम किये. 1990 के दौर में एक से बढ़कर एक सफल फिल्मे देकर उन्होंने हिंदी सिनेमा में अपना नाम स्वर्णक्षरो से लिख दिया था. उस समय उनकी सबसे सफल फिल्मो में रोमांटिक ड्रामा दिल (1990), रोमांटिक राजा हिन्दुस्तानी (1996), इसके लिए उन्हें फिल्मफेयर की तरफ से बेस्ट एक्टर का पुरस्कार भी मिला, और ड्रामा फिल्म सरफरोश (1999) भी शामिल है. हिंदी फिल्मो के अलावा उन्होंने एक कैनेडियन-भारतीय फिल्म अर्थ (Earth) (1998) में भी अभिनय किया है.
2001 में, आमिर खान / Aamir Khan ने एक प्रोडक्शन कंपनी की स्थापना की. और अपने प्रोडक्शन में पहली फिल्म ‘लगान’ रिलीज़ की. यह फिल्म आलोचकों और कमर्शियल लोगो की नज़र से सफल रही और साथ ही इसे सर्वश्रेष्ट विदेशी भाषा फिल्म (Best Foreign Language Film) के लिए 74 वे अकादमी पुरस्कार में भारत की अधिकारिक सुची में चुन लिया गया. इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का अवार्ड भी मिला और ‘लगान’ को साल की सर्वश्रेष्ट फिल्म का दर्जा दिया गया. इसके बाद फिल्म से 4 सालो तक दूर रहने के बाद खान ने प्रेरणादायक भूमिका अदा करना शुरू की और 2005 में केतन मेहता की मंगल पांडे में वे एक सिपाही के रूप में दिखे. और 4 साल के आराम के बाद 2006 में उन्होंने दो सुपरहिट फिल्म फना और रंग दे बसंती रिलीज़ की. उसी साल उन्होंने अपने करियर की शुरुवात एक निर्माता के रूप में भी की और 2007 में तारे जमीन पर का निर्माण किया. जिसे दर्शको की अच्छी प्रतिक्रिया मिली. और इसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ट निर्देशक (Best Director) का भी पुरस्कार मिला. कमर्शियली खान की सबसे सफल फिल्मो में गजनी (2008), 3-इडियट्स (2009), धुम-3 (2013), पीके (2014) शामिल है, जिनके रिलीज़ होते ही बॉलीवुड के कई रिकार्ड्स धराशाही हो गये थे.

आमिर खान व्यक्तिगत जीवन – Aamir Khan Early Life

आमिर खान / Aamir Khan का विवाह रीना दत्ता से हुआ, जिसने क़यामत से क़यामत तक में छोटी सी भुमिका निभाई थी. उनका विवाह 18 अप्रैल 1986 को हुआ था. उन्हें दो बच्चे थे, एक बेटा. जुनैद और एक बेटी इरा. रीना ने आमिर के करियर को सफल बनाने में उनकी बहोत सहायता की थी. लेकिन फिर भी दिसम्बर 2002 में खान ने उन्हें तलाक दे दिया था, और इस तरह 15 साल की शादी में टूट गयी. रीना को ही उनके दोनों बेटे की देखभाल करने के लिए दिया गया था. 28 दिसम्बर 2005 को, खान का दूसरा विवाह किरन राव से हुआ, जो लगान फिल्म बनाते समय आशुतोष गोवारिकर की सह-निर्देशक थी. 5 दिसम्बर 2011 को उन्हें एक बेटा, जिसका नाम हे आजाद राव खान.
आज देश का बच्चा-बच्चा आमिर खान को चाहता है. उनके अनुयायी (Follower) हमें भारत में ही नही बल्कि विदेशो में भी मिलते है. वे हमेशा से ही सामाजिक गतिविधियों में सक्रीय रूप से हिस्सा लेते रहे है. एक सफल कलाकार होने के साथ ही खान एक मानव प्रेमी भी है, बाद में उन्होंने समाज में हो रही गतिविधियों पर बोलना भी शुरू किया. वे कई राजनितिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे और समाज सेवा करने लगे. समाज में हो रही समस्याओ को जानने के लिए उन्होंने एक टेलीविज़न शो ‘सत्यमेव जयते’ का निर्माण किया, जिसमे उन्होंने भारत में तेज़ी से बढ़ रही समस्याओ को दिखाया और साथ ही उसे रोकने की भी कोशिश की.
आमिर खान / Aamir Khan हमेशा से लोगो को यह सलाह देते आये है की, “आप तब महान नही बनते जब आप बड़ी-बड़ी बाते करने लगते हो, जबकि आप महान तब बनते हो जब आप छोटी-छोटी बातो को समझने लगते हो.”
Aamir Khan Dialogues :-
  1. जिंदगी जीने के दो ही तरीके होते है…एक जो हो रहा है होने दो, बरदाश्त करते रहो … या फिर जिम्मेदारी उठाओ उसे बदलने की. ( Movies : रंग दे बसंती )
  2. लाढ़ोंगे तो खून बहेगा… और नहीं लाढ़ोंगे तो ये लोग खून चूस लेगे. ( फिल्म : गुलाम)
  3. दावा भी काम ना आये, कोई दुआ ना लगे… मेरे खुदा किसी को प्यार की हवा ना लगे. (Film : सरफ़रोश)
  4. बच्चो काबिल बनो, काबिल… कमियाबी तो साली झक मार के पीछे भागेंगी…. ( Movie : 3 इडियट्स)

Thursday, 20 April 2017

Amitabh Bachchan Biography – अमिताभ बच्चन जीवनी

अमिताभ बच्चन हिन्दी फिल्मों के अभिनेता हैं। हिन्दी सिनेमा में चार दशकों से ज्यादा का वक्त बिता चुके अमिताभ बच्चन को उनकी फिल्मों से ‘एंग्री यंग मैन’ की उपाधि प्राप्त है। वे हिन्दी सिनेमा के सबसे बड़े और सबसे प्रभावशाली अभिनेता माने जाते हैं। उन्हें लोग ‘सदी के महानायक’ के तौर पर भी जानते हैं और प्‍यार से बिगबी, शहंशाह भी कहते हैं। सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के तौर पर उन्हें 3 बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुका है। इसके अलावा 14 बार उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड भी मिल चुका है। फिल्मों के साथ साथ वे गायक, निर्माता और टीवी प्रिजेंटर भी रहे हैं। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मान से भी नवाजा है।


पृष्ठभूमि-

अमिताभ बच्चन का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम हरिवंश राय बच्चन था। उनके पिता हिंदी जगत के मशहूर कवि रहे हैं। उनकी मां का नाम तेजी बच्चन था। उनके एक छोटे भाई भी हैं जिनका नाम अजिताभ है। अमिताभ का नाम पहले इंकलाब रखा गया था लेकिन उनके पिता के साथी रहे कवि सुमित्रानंदन पंत के कहने पर उनका नाम अमिताभ रखा गया।

पढ़ाई-

अमिताभ बच्चन शेरवुड कॉलेज, नैनीताल के छात्र रहे हैं। इसके बाद की पढ़ाई उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोरीमल कॉलेज से की थी। पढ़ाई में भी वे काफी अव्‍वल थे और कक्षा के अच्‍छे छात्रों में उनकी गिनती होती थी। कहीं ना कहीं ये गुण उनके पिताजी से ही आए थे क्‍योंकि वे भी जानेमाने कवि रहे थे। 

शादी-

अमिताभ बच्चन की शादी जया बच्चन से हुई जिनसे उन्हें दो बच्चे हैं। अभिषेक बच्चन उनके सुपुत्र हैं और श्वेता नंदा उनकी सुपुत्री हैं। रेखा से उनके अफेयर की चर्चा भी खूब हुई और लोगों के गॉसिप का विषय बनी। 

करियर-

अमिताभ बच्चन की शुरूआत फिल्मों में वॉयस नैरेटर के तौर पर फिल्म 'भुवन शोम' से हुई थी लेकिन अभिनेता के तौर पर उनके करियर की शुरूआत फिल्म 'सात हिंदुस्तानी' से हुई। इसके बाद उन्होंने कई फिल्में कीं लेकिन वे ज्यादा सफल नहीं हो पाईं। फिल्म 'जंजीर' उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। इसके बाद उन्होंने लगातार हिट फिल्मों की झड़ी तो लगाई ही, इसके साथ ही साथ वे हर दर्शक वर्ग में लोकप्रिय हो गए और फिल्म इंडस्ट्री में अपने अभिनय का लोहा भी मनवाया।
 
प्रसिद्ध फिल्में-

सात हिंदुस्तानी, आनंद, जंजीर, अभिमान, सौदागर, चुपके चुपके, दीवार, शोले, कभी कभी, अमर अकबर एंथनी, त्रिशूल, डॉन, मुकद्दर का सिकंदर, मि. नटवरलाल, लावारिस, सिलसिला, कालिया, सत्ते पे सत्ता, नमक हलाल, शक्ति, कुली, शराबी, मर्द, शहंशाह, अग्निपथ, खुदा गवाह, मोहब्बतें, बागबान, ब्लैक, वक्त, सरकार, चीनी कम, भूतनाथ, पा, सत्याग्रह, शमिताभ जैसी शानदार फिल्मों ने ही उन्हें सदी का महानायक बना दिया।

अमिताभ के करियर का बुरा दौर:- 

- उनकी फिल्‍में अच्‍छा बिजनेस कर रही थीं कि अचानक 26 जुलाई 1982 को कुली फिल्‍म की शूटिंग के दौरान उन्‍हें गंभीर चोट लगी गई। दरअसल, फिल्‍म के एक एक्‍शन दृश्‍य में अभिनेता पुनीत इस्‍सर को अमिताभ को मुक्‍का मारना था और उन्‍हें मेज से टकराकर जमीन पर गिरना था। लेकिन जैसे ही वे मेज की तरफ कूदे, मेज का कोना उनके आंतों में लग गया जिसकी वजह से उनका काफी खून बह गया और स्‍थिति इतनी गंभीर हो गई कि ऐसा लगने लगा कि वे मौत के करीब हैं लेकिन लोगों की दुआओं की वजह से वे ठीक हो गए। 

राजनीति में प्रवेश:- 

- कुली में लगी चोट के बाद उन्‍हें लगा कि वे अब फिल्‍में नहीं कर पाएंगे और उन्‍होंने अपने पैर राजनीति में बढ़ा दिए। उन्‍होंने 8वें लोकसभा चुनाव में अपने गृह क्षेत्र इलाहाबाद की सीट से उ.प्र. के पूर्व मुख्‍यमंत्री एचएन बहुगुणा को काफी ज्‍यादा वोटों से हराया। 

- राजनीति में ज्‍यादा दिन वे नहीं टिक सके और फिर उन्‍होंने फिल्‍मों को ही अपने लिए उचित समझा। 

- जब उनकी कंपनी एबीसीएल आर्थिक संकट से जूझ रही थी तब उनके मित्र और राजनी‍तिज्ञ अमर सिंह ने उनकी काफी मदद की थी। बाद में अमिताभ ने भी अमर सिंह की समाजवादी पार्टी को काफी सहयोग किया। उनकी पत्‍नी जया बच्‍चन ने समाजवादी पार्टी को ज्‍वाइन कर लिया और वे राज्‍यसभा की सदस्‍य बन गईं। अमिताभ ने पार्टी के लिए कई विज्ञापन और राजनीतिक अभियान भी किए। 

- फिल्‍मेां से एक बार फिर उन्‍होंने वापसी की और फिल्‍म 'शहंशाह' हिट हुई। इसके बाद उनके अग्निपथ में निभाए गए अभिनय को भी काफी सराहा गया और इसके लिए उन्‍हें राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार भी मिला लेकिन उस दौरान बाकी कई फिल्‍में कोई खास कमाल नहीं दिखा स‍कीं।

फिल्‍मों में तगड़ी वापसी:- 


- 2000 में आई मोहब्‍बतें उनके डूबते करियर को बचाने में काफी मददगार साबित हुई और फिल्‍म को और उनके अभिनय को काफी सराहा गया। इसके बाद उन्‍होंने कई फिल्‍मों में काम किया जिसे आलोचकों के साथ साथ दर्शकों ने भी काफी पसंद किया।

- 2005 में आई फिल्‍म 'ब्‍लैक' में उन्‍होंने शानदार अभिनय किया और उन्‍हें राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार से एक बार फिर सम्‍मानित किया गया। 

- फिल्‍म पा में उन्‍होंने अपने बेटे अभिषेक बच्‍चन के ही बेटे का किरदार निभाया। फिल्‍म को काफी पसंद किया गया और एक बार फिर उन्‍हें राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार से नवाजा गया। 
 
- वे काफी लंबे समय से गुजरात पर्यटन के ब्रांड एंबेसडर भी हैं। 

- उन्‍होंने टीवी की दुनिया में भी बुलंदियों के झंडे गाड़े हैं और उनके द्वारा होस्‍ट किया गया केबीसी बहुत पापुलर हुआ। इसने टीआरपी के सारे रिकार्ड तोड़ दिए और इस प्रोग्राम के जरिए कई लोग करोड़पति बने।
सामाजिक कार्यों में आगे:-
- इन सबके इतर अमिताभ बच्‍चन लोगों की मदद के लिए भी हमेशा आगे खड़े रहते हैं। वे सामाजिक कार्यों में काफी आगे रहते हैं। कर्ज में डूबे आंध्रप्रदेश के 40 किसानों को अमिताभ ने 11 लाख रूपए की मदद की। ऐसे ही विदर्भ के किसानों की भी उन्‍होंने 30 लाख रूपए की मदद की। इसके अलावा और भी कई ऐसे मौके रहे हैं जिसमें अमिताभ ने दरियादिली दिखाई है और लोगों की मदद की है। 

- जून 2000 में वे पहले ऐसे एशिया के व्‍यक्ति थे जिनकी लंदन के मैडम तुसाद संग्रहालय में वैक्‍स की मूर्ति स्‍थापित गई थी। 

- उनके ऊपर कई किताबें भी लिखी जा चुकी हैं- 
  अमिताभ बच्‍चन: द लिजेंड 1999 में, टू बी ऑर नॉट टू बी: अमिताभ बच्‍चन 2004 में, एबी: द लिजेंड (ए फोटोग्राफर्स ट्रिब्‍यूट) 2006 में, अमिताभ बच्‍चन: एक जीवित किंवदंती 2006 में, अमिताभ: द मेकिंग ऑफ ए सुपरस्‍टार 2006 में, लुकिंग फॉर द बिग बी: बॉलीवुड, बच्‍चन एंड मी 2007 में और बच्‍चनालिया 2009 में प्रकाशित हुई हैं। 

- वे शुद्ध शाकाहारी हैं और 2012 में 'पेटा' इंडिया द्वारा उन्‍हें 'हॉटेस्‍ट वेजिटेरियन' करार दिया गया। पेटा एशिया द्वारा कराए गए एक कांटेस्‍ट पोल में एशिया के सेक्सियस्‍ट वेजिटेरियन का टाईटल भी उन्‍होंने जीता। 
टेक्‍नोलॉजी के दौर में भी सबसे एक्टिव बच्‍चन:-
आज का दौर सोशल मीडिया का है। खबरें पल पल में इंटरनेट पर अपलोड होती रहती हैं। ऐसे में हमारे बिगबी कहां पीछे रहने वाले हैं। वे भी फेसबुक, ट्विटर का जमकर इस्‍तेमाल करते हैं और यही कारण है कि दोनों सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर उनके फैंस की संख्‍या लाखों-करोड़ों में है। वे अपने प्रंशसको को कभी नहीं निराश करते हैं और पल पल की घटनाओं को वे इन माध्‍यमों के जरिए शेयर करते हैं।

Monday, 17 April 2017

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जीवनी | Mahatma Gandhi biography in Hindi

आप उन्हें बापू कहो या महात्मा दुनिया उन्हें इसी नाम से जानती हैं। अहिंसा और सत्याग्रह के संघर्ष से उन्होंने भारत को अंग्रेजो से स्वतंत्रता दिलाई। उनका ये काम पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया। वो हमेशा कहते थे बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो, और उनका ये भी मानना था की सच्चाई कभी नहीं हारती। इस महान इन्सान को भारत ने राष्ट्रपिता घोषित कर दिया। उनका पूरा नाम था ‘मोहनदास करमचंद गांधी‘ – Mahatma Gandhi 


पूरा नाम    – मोहनदास करमचंद गांधी
जन्म        – 2 अक्तुंबर १८६९
जन्मस्थान – पोरबंदर (गुजरात)
पिता        – करमचंद
माता        – पूतळाबाई
शिक्षा       – १८८७ में मॅट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण। १८९१ में इग्लंड में बॅरिस्टर बनकर वो भारत लोटें।
विवाह      – कस्तूरबा


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जीवनी – Mahatma Gandhi in Hindi


महात्मा गांधी का जन्म पोरबंदर इस शहर गुजरात राज्य में हुआ था। गांधीजीने ने शुरवात में काठियावाड़ में शिक्षा ली बाद में लंदन में विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वह भारत में आकर अपनी वकालत की अभ्यास करने लगे। लेकिन सफल नहीं हुए। उसी समय दक्षिण अफ्रीका से उन्हें एक कंपनी में क़ानूनी सलाहकार के रूप में काम मिला। वहा महात्मा गांधीजी लगभग 20 साल तक रहे। वहा भारतीयों के मुलभुत अधिकारों के लिए लड़ते हुए कई बार जेल भी गए। अफ्रीका में उस समय बहुत ज्यादा नस्लवाद हो रहा था। उसके बारे में एक किस्सा भी है। जब गांधीजी अग्रेजों के स्पेशल कंपार्टमेंट में चढ़े उन्हें गांधीजी को बहुत बेईजत कर के ढकेल दिया।
वहा उन्होंने सरकार विरूद्ध असहयोग आंदोलन संगठित किया। वे एक अमेरिकन लेखक हेनरी डेविड थोरो लेखो से और निबंधो से बेहद प्रभावित थे। आखिर उन्होंने अनेक विचारो ओर अनुभवों से सत्याग्रह का मार्ग चुना, जिस पर गांधीजी पूरी जिंदगी चले। पहले विश्वयुद्ध के बाद भारत में ‘होम रुल’ का अभियान तेज हो गया। 1919 में रौलेट एक्ट पास करके ब्रिटिश संसद ने भारतीय उपनिवेश के अधिकारियों को कुछ आपातकालींन अधिकार दिये तो गांधीजीने लाखो लोगो के साथ सत्याग्रह आंदोलन किया। उसी समय एक और चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह क्रांतिकारी देश की स्वतंत्रता के लिए हिंसक आंदोलन कर रहे थे। लेकीन गांधीजी का अपने पूर्ण विश्वास अहिंसा के मार्ग पर चलने पर था। और वो पूरी जिंदगी अहिंसा का संदेश देते रेहे।
१८९३ में उन्हें दादा अब्दुला इनका व्यापार कंपनी का मुकदमा चलाने के लिये दक्षिण आफ्रिका को जाना पड़ा। जब दक्षिण आफ्रिका में थे तब उन्हें भी अन्याय-अत्याचारों का सामना करना पड़ा। उनका प्रतिकार करने के लिये भारतीय लोगोंका संघटित करके उन्होंने १८९४ में ‘नेशनल इंडियन कॉग्रेस की स्थापना की।
१९०६ में वहा के शासन के आदेश के अनुसार पहचान पत्र साथ में रखना सक्त किया था। इसके अलावा रंग भेद नीती के विरोध में उन्होंने ब्रिटिश शासन विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किया।
१९१५ में Mahatma Gandhi – महात्मा गांधीजी भारत लौट आये और उन्होंने सबसे पहले साबरमती यहा सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की।
तथा १९१९ में उन्होंने ‘सविनय अवज्ञा’ आंदोलन में शुरु किया।
१९२० में असहयोग आंदोलन शुरु किया।
१९२० में लोकमान्य तिलक के मौत के बाद राष्ट्रिय सभा का नेवृत्त्व महात्मा गांधी के पास आया।
१९२० में के नागपूर के अधिवेशन में राष्ट्रिय सभा ने असहकार के देशव्यापी आंदोलन अनुमोदन देनेवाला संकल्प पारित किया। असहकार आंदोलन की सभी सूत्रे महात्मा गांधी पास दिये गये।
१९२४ में बेळगाव यहा राष्ट्रिय सभा के अधिवेशन का अध्यक्षपद।
१९३० में सविनय अवज्ञा आदोलन शुरु हुवा। नमक के उपर कर और नमक बनानेकी सरकार एकाधिकार रद्द की जाये। ऐसी व्हाइसरॉय से मांग की, व्हाइसरॉय ने उस मांग को नहीं माना तब गांधीजी ने नमक का कानून तोड़कर सत्याग्रह करने की ठान ली।
१९३१ में राष्ट्रिय सभे के प्रतिनिधि बनकर गांधीजी दूसरी गोलमेज परिषद को उपस्थित थे।
१९३२ में उन्होंने अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना की।
१९३३ में उन्होंने ‘हरिजन’ नाम का अखबार शुरु किया।
१९३४ में गांधीजीने वर्धा के पास ‘सेवाग्राम’ इस आश्रम की स्थापना की। हरिजन सेवा, ग्रामोद्योग, ग्रामसुधार, आदी विधायक कार्यक्रम करके उन्होंने प्रयास किया।
१९४२ में चले जाव आंदोलन शुरु उवा। ‘करेगे या मरेगे’ ये नया मंत्र गांधीजी ने लोगों को दिया।
व्दितीय विश्वयुध्द में महात्मा गांधीजी ने अपने देशवासियों से ब्रिटेन के लिये न लड़ने का आग्रह किया था। जिसके लिये उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। युध्द के उपरान्त उन्होंने पुन: स्वतंत्रता आदोलन की बागडोर संभाल ली। अंततः १९४७ में हमारे देश को स्वतंत्रता प्राप्त हो गई। गांधीजीने सदैव विभिन्न धर्मो के प्रति सहिष्णुता का संदेश दिया। १९४८ में नाथूराम गोडसे ने अपनी गोली से उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। इस दुर्घटना से सारा विश्व शोकमग्न हो गया था। वर्ष १९९९ में बी.बी.सी. व्दारा कराये गये सर्वेक्षण में गांधीजी को बीते मिलेनियम का सर्वश्रेष्ट पुरुष घोषित किया गया।
महात्मा गांधी विशेषता – भारत के राष्ट्रपिता,  महात्मा
Mahatma Gandhi Death – मृत्यु – 30 जनवरी १९४८ में नथुराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या की।
मोहनदास करमचंद गांधी – Mahatma Gandhi भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के निदेशक थे। उन्ही की प्रेरणा से १९४७ में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हो सकी। अपनी अदभुत आध्यात्मिक शक्ति से मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों को उदभाषित करने वाले। विश्व इतिहास के महान तथा अमर नायक महात्मा गांधी आजीवन सत्य, अहिंसा और प्रेम का पथ प्रदर्शित करते रहे।

Saturday, 15 April 2017

बाबासाहेब आंबेडकर के बारे में ऐसे तथ्य, जिन्हें शायद ही आप जानते हो – Unknown interesting facts about Bbasaheb Ambedkar



  • बाबासाहेब आंबेडकर अपने माता-पिता की 14 वी संतान थे।
  • अपने भाइयों-बहनों मे अंबेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए।
  • डॉ. आंबेडकर के पूर्वज ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे।
  • डॉ. आंबेडकर का वास्तविक नाम अम्बावाडेकर था। लेकिन उनके शिक्षक महादेव आंबेडकर को उनसे काफी लगाव था, इसीलिए उन्हें बाबासाहेब का उपनाम ‘अम्बावाडेकर’ से बदलकर ‘आंबेडकर’ रखा।
  • मुंबई के सरकारी लॉ कॉलेज में वे 2 साल तक प्रिंसिपल के पद पर कार्यरत भी रह चुके है।
  • डॉ. आंबेडकर भारतीय संविधान की धारा 370 के खिलाफ थे, जिसके तहत भारत के जम्मू एवं कश्मीर राज्य को विशेष राज्य की पदवी दी गयी थी।
  • विदेश में जाकर अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि पाने वाले आंबेडकर पहले भारतीय थे।
  • 14 अक्टूबर 1956 को विजयादशमी के दिन डॉ. आंबेडकर ने नागपुर, महाराष्ट्र में अपने 5 लाख से भी ज्यादा साथियों के साथ बौद्धधर्म की दीक्षा ली।
  • डॉ. आंबेडकर ने एक बौद्ध भिक्षु से पारंपरिक तरीके से तीन रत्न ग्रहण और पंचशील को अपनाते हुये बौद्ध धर्म ग्रहण किया। बौद्ध-संसार के इतिहास में इसे सुवर्णाक्षरों में लिखा गया।
  • डॉ. आंबेडकर को डायबिटीज की बीमारी से लम्बे समय तक जूझना पड़ा था।
  • भारत के राष्ट्रीय ध्वज में अशोक चक्र को जगह देने का श्रेय भी डॉ. अम्बेडकर को जाता है।

Dr BhimRav Ambedkar biography in Hindi | डॉ. भीमराव अम्बेडकर जीवनी

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर भारतीय संविधान के शिल्पकार और आज़ाद भारत के पहले न्याय मंत्री थे। सामाजिक भेदभाव के विरोध में कार्य करने वाले सबसे प्रभावशाली लोगो में से एक Dr. Br Ambedkar थे। विशेषतः बाबासाहेब आंबेडकर – भारतीय न्यायविद, अर्थशास्त्री, राजनेता और समाज सुधारक के नाम से जाने जाते है। महिला, मजदूर और दलितों पर हो रहे सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाने और लढकर उन्हें न्याय दिलाने के लिए भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को सदा आदर से स्मरण किया जाते है।
भीमराव रामजी आंबेडकर जो विश्व विख्यात है। जिन्होंने अपना पूरा जीवन बहुजनो को उनका अधिकार दिलाने में व्यतीत किया। उनके जीवन को देखते हुए निच्छित ही यह लाइन उनपर सम्पूर्ण रूप से सही साबित होगी –
“जीवन लम्बा होने की बजाये महान होना चाहिये ” DR AMBEDKAR

डॉ. भीमराव अम्बेडकर जीवनी – Dr. Br Ambedkar Biography in Hindi

पूरा नाम    – भीमराव रामजी अम्बेडकर
जन्म        – 14 अप्रेल 1891
जन्मस्थान – महू. (जि. इदूर मध्यप्रदेश)
पिता        – रामजी
माता        – भीमाबाई
शिक्षा       – 1915  में एम. ए. (अर्थशास्त्र)। 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय में से PHD। 1921 में मास्टर                    ऑफ सायन्स। 1923  में डॉक्टर ऑफ सायन्स।
विवाह         – दो बार, पहला रमाबाई के साथ (1908 में) दूसरा डॉ. सविता कबीर के साथ (1948 में)
भीमराव रामजी आम्बेडकर का जन्म ब्रिटिशो द्वारा केन्द्रीय प्रान्त (अब मध्यप्रदेश) में स्थापित नगर व सैन्य छावनी मऊ में हुआ था। वे रामजी मालोजी सकपाल जो आर्मी कार्यालय के सूबेदार थे और भीमाबाई की 14 वी व अंतिम संतान थे। उनका परिवार मराठी था और वे अम्बावाड़े नगर जो आधुनिक महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में है, से सम्बंधित था। वे हिंदु महार (दलित) जाती से संपर्क रखते थे, जो अछूत कहे जाते थे और उनके साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था।
 जाता था।
आंबेडकर के पूर्वज लम्बे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे और उनके पिता, भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे ओ यहाँ काम करते हुए वो सूबेदार के पद तक पहुचे थे। उन्होने अपने बच्चो को स्कूल में पढने और कड़ी महेनत करने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया। स्कूली पढाई में सक्षम होने के बावजूद आम्बेडकर और अन्य अस्पृश्य बच्चो को विद्यालय में अलग बिठाया जाता था और अध्यापको द्वारा न तो ध्यान दिया जाता था, न ही उनकी कोई सहायता की। उनको कक्षा के अन्दर बैठने की अनुमति नहीं थी, साथ ही प्यास लगने पर कोई उची जाती का व्यक्ति उचाई से पानी उनके हातो पर डालता था, क्यू की उनकी पानी और पानी के पात्र को भी स्पर्श करने की अनुमति नहीं थी। लोगो के मुताबिक ऐसा करने से पात्र और पानी दोनों अपवित्र हो जाते थे। आमतौर पर यह काम स्कूल के चपरासी द्वारा किया जाता था जिसकी अनुपस्थिति में बालक आंबेडकर को बिना पानी के ही रहना पड़ता था। बाद में उन्होंने अपनी इस परिस्थिती को “ना चपरासी, ना पानी” से लिखते हुए प्रकाशित किया।
1894 में रामजी सकपाल सेवानिर्वुत्त हो जाने के बाद वे सहपरिवार सातारा चले गये और इसके दो साल बाद, आंबेडकर की माँ की मृत्यु हो गयी। बच्चो की देखभाल उनकी चची ने कठिन परिस्थितियों में रहते हुए की। रामजी सकपाल के केवल तिन बेटे, बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बेटियों मंजुला और तुलासा। अपने भाइयो और बहनों में केवल आंबेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए ओर इसके बाद बड़े स्कूल में जाने में सफल हुए। अपने एक देशस्त ब्राह्मण शिक्षक महादेव आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे, उनके कहने पर अम्बावडेकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर आंबेडकर जोड़ लिया जो उनके गाव के नाम “अम्बावाड़े” पर आधारित था।
भीमराव आंबेडकर को आम तौर पर बाबासाहेब के नाम से जाने जाता हे, जिन्होंने आधुनिक बुद्धिस्ट आन्दोलनों को प्रेरित किया और सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध दलितों के साथ अभियान चलाया, स्त्रियों और मजदूरो के हक्को के लिए लड़े। वे स्वतंत्र भारत के पहले विधि शासकीय अधिकारी थे और साथ ही भारत के संविधान निर्माता भी थे।
आंबेडकर एक बहोत होशियार और कुशल विद्यार्थी थे, उन्होंने कोलम्बिया विश्वविद्यालय और लन्दन स्कूल ऑफ़ इकनोमिक से बहोत सारी क़ानूनी डिग्री प्राप्त कर रखी थी और अलग-अलग क्षेत्रो में डॉक्टरेट कर रखा था, उनकी कानून, अर्थशास्त्र और राजनितिक शास्त्र पर अनुसन्धान के कारण उन्हें विद्वान की पदवी दी गयी. उनके प्रारंभिक करियर में वे एक अर्थशास्त्री, प्रोफेसर और वकील थे। बाद में उनका जीवन पूरी तरह से राजनितिक कामो से भर गया, वे भारतीय स्वतंत्रता के कई अभियानों में शामिल हुए, साथ ही उस समय उन्होंमे अपने राजनितिक हक्को और दलितों की सामाजिक आज़ादी, और भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के लिए अपने कई लेख प्रकाशित भी किये, जो बहोत प्रभावशाली साबित हुए। 1956 में उन्होंने धर्म परिवर्तन कर के बुद्ध स्वीकारा, और ज्यादा से ज्यादा लोगो को इसकी दीक्षा भी देने लगे।
1990 में, मरणोपरांत आंबेडकर को सम्मान देते हुए, भारत का सबसे बड़ा नागरिकी पुरस्कार, “भारत रत्न” जारी किया। आंबेडकर की महानता के बहोत सारे किस्से और उनके भारतीय समाज के चित्रण को हम इतिहास में जाकर देख सकते है।

एक नजर में बाबासाहेब अम्बेडकर की जानकारी – Dr BR Ambedkar in Hindi

1920 में ‘मूक नायक’ ये अखबार उन्होंने शुरु करके अस्पृश्यों के सामाजिक और राजकीय लढाई को शुरुवात की।
1920 में कोल्हापुर संस्थान में के माणगाव इस गाव को हुये अस्पृश्यता निवारण परिषद में उन्होंने हिस्सा लिया।
1924 में उन्होंने ‘बहिष्कृत हितकारनी सभा’ की स्थापना की, दलित समाज में जागृत करना यह इस संघटना का उद्देश था।
1927 में ‘बहिष्कृत भारत’  नामका पाक्षिक शुरु किया।
1927 में महाड यहापर स्वादिष्ट पानी का सत्याग्रह करके यहाँ की झील अस्प्रुश्योको पिने के पानी के लिए खुली कर दी।
1927 में जातिव्यवस्था को मान्यता देने वाले ‘मनुस्मृती’ का उन्होंने दहन किया।
1928 में गव्हर्नमेंट लॉ कॉलेज में उन्होंने प्राध्यापक का काम किया।
1930 में नाशिक यहा के ‘कालाराम मंदिर’ में अस्पृश्योको प्रवेश देने का उन्होंने सत्याग्रह किया।
1930 से 1932 इस समय इ इंग्लड यहा हुये गोलमेज परिषद् में वो अस्पृश्यों के प्रतिनिधि बनकर उपस्थिति रहे। उस जगह उन्होंने अस्पृश्यों के लिये स्वतंत्र मतदार संघ की मांग की। 1932 में इग्लंड के पंतप्रधान रॅम्स मॅक्ड़ोनाल्ड इन्होंने ‘जातीय निर्णय’ जाहिर करके अम्बेडकर की उपरवाली मांग मान ली।
जातीय निर्णय के लिये Mahatma Gandhi का विरोध था। स्वतंत्र मतदार संघ की निर्मिती के कारण अस्पृश्य समाज बाकी के हिंदु समाज से दुर जायेगा ऐसा उन्हें लगता था। उस कारण जातीय निवडा के तरतुद के विरोध में गांधीजी ने येरवड़ा (पुणे) जेल में प्रनांतिक उपोषण आरंभ किया। उसके अनुसार महात्मा गांधी और डॉ. अम्बेडकर बिच में 25 डिसंबर 1932 को एक करार हुवा। ये करार ‘पुणे करार’ इस नाम से जाना है। इस करारान्वये डॉ. अम्बेडकर ने स्वतंत्र मतदार संघ की जिद् छोडी। और अस्पृश्यों के लिये कंपनी लॉ में आरक्षित सीटे होनी चाहिये, ऐसा आम पक्षियों माना गया।
1935 में डॉ.अम्बेडकर को मुंबई के गव्हर्नमेंट लॉ कॉलेज के अध्यापक के रूप में चुना गया।
1936 में सामाजिक सुधरना के लिये राजकीय आधार होना चाहिये इसलिये उन्होंने ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ स्थापन कि।
1942 में ‘शेड्युल्ट कास्ट फेडरेशन’ इस नाम के पक्ष की स्थापना की।
1942 से 1946 इस वक्त में उन्होंने गव्हर्नर जनरल की कार्यकारी मंडल ‘श्रम मंत्री’ बनकर कार्य किया।
1946 में ‘पीपल्स एज्युकेशन सोसायटी’ इस संस्थाकी स्थापना की।
डॉ. अम्बेडकर ने घटना मसौदा समिति के अध्यक्ष बनकर काम किया। उन्होंने बहोत मेहनत पूर्वक भारतीय राज्य घटने का मसौदा तयार किया। और इसके कारण भारतीय राज्य घटना बनाने में बड़ा योगदान दिया। इसलिये ‘भारतीय राज्य घटना के शिल्पकार’ इस शब्द में उनका सही गौरव किया जाता है।
स्वातंत्र के बाद के पहले मंत्री मंडल में उन्होंने कानून मंत्री बनकर काम किया।
1956 में नागपूर के एतिहासिक कार्यक्रम में अपने 2 लाख अनुयायियों के साथ उन्होंने बौध्द धर्म की दीक्षा ली।
Br Ambedkar Awards – पुरस्कार : 1990  में ‘बाबा साहेब’ को देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
Br Ambedkar Death – मृत्यु : 6 दिसंबर 1956 को लगभग 63 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया।
जिस समय सामाजिक स्तर पर बहुजनो को अछूत मानकर उनका अपमान किया जाता था, उस समय आंबेडकर ने उन्हें वो हर हक्क दिलाया जो एक समुदाय को मिलना चाहिये। हमें भी अपने आसपास के लोगो में भेदभाव ना करते हुए सभी को एक समान मानना चाहिये। हर एक इंसान का जीवन स्वतंत्र है, हमें समाज का विकास करने से पहले खुद का विकास करना चाहिये। क्योकि अगर देश का हर एक व्यक्ति एक स्वयं का विकास करने लगे तो, हमारा समाज अपने आप ही प्रगतिशील हो जायेंगा।
हमें जीवन में किसी एक धर्म को अपनाने की बजाये, किसी ऐसे धर्म को अपनाना चाहिये जो स्वतंत्रता, समानता और भाई-चारा सिखाये।