यह कहानी है फर्श पर सोने वाले युवा सुंदर की जो आज गूगल का सीईओ बनकर अर्श पर हैं। सुंदर की कामयाबी की कहानी किसी परिकथा से कम नहीं।
वर्ष 1972 में चेन्नई (तब के मद्रास) में जन्मे सुंदर के पिता ब्रिटिश कंपनी जीईसी में इंजीनियर थे। उनका परिवार दो कमरों के एक मकान में रहता था।
उसमें सुंदर की पढ़ाई के लिए कोई अलग कमरा नहीं था। इसलिए वे ड्राइंग रूम के फर्श पर अपने छोटे भाई के साथ सोते थे। घर में न तो टेलीविजन था और न ही कार।
इससे उनके परिवार की आर्थिक हैसियत का अनुमान लगाया जा सकता है लेकिन इंजीनियर पिता ने बचपन में अपने बेटे के मन में तकनीक के बीज बो दिए।
इसलिए तमाम अभाव भी सुंदर के आगे बढ़ने की राह में बाधा नहीं बन सके और महज 17 साल की उम्र में उन्होंने आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास कर खड़गपुर में दाखिला लिया।
कहा जाता है कि पूत के पांव पालने में नजर आ जाते हैं। इसे चरितार्थ करते हुए आईआईटी, खड़गपुर से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई (1989-93) के दौरान सुंदर हमेशा अपने बैच के टॉपर रहे।
आईआईटी में सुंदर को पढ़ा चुके प्रोफेसर सनत कुमार राय बताते हैं, ‘मेटलर्जिकल एंड मैटेरियल साइंस की पढ़ाई के दौरान भी सुंदर इलेक्ट्रानिक्स के क्षेत्र में विभिन्न विषयों पर काम कर रहे थे। वह भी उस दौर में जब आईआईटी के पाठ्यक्रम में इलेक्ट्रानिक्स था ही नहीं।‘ तब भी सुंदर का पहला प्यार तो इलेक्ट्रानिक्स ही था।
आईआईटी के नेहरू हाल छात्रावास में रहने वाले सुंदर को याद करते हुए प्रोफेसर राय कहते हैं कि सुंदर बेहद सभ्य, विनम्र और मृदुभाषी हैं। वर्ष 1993 में फाइनल परीक्षा में भी अपने बैच में टॉप करने के साथ उन्होंने रजत पदक हासिल किया था। उसके बाद छात्रवृत्ति पाकर आगे की पढ़ाई के लिए वे स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय चले गए।
आईआईटी से निकलने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। विभिन्न कंपनियों में काम करते हुए उन्होंने कोई 11 साल पहले गूगल में नौकरी शुरू की थी।
पिचाई के सहपाठी और बाद में उनके साथ गूगल में आठ साल तक काम करने वाले सेजार सेनगुप्ता कहते हैं, ‘गूगल में ऐसा एक भी व्यक्ति मिलना मुश्किल है जो सुंदर को पसंद नहीं करता हो या उनसे प्रभावित नहीं हो।‘
उनके एक अन्य सहपाठी पी. सुब्रमण्यम बताते हैं, ‘सुंदर के चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती और हमलोग मजाक में उसे किताबी कीड़ा कहते थे।‘
गूगल का सीईओ चुने जाने के बाद अब सुंदर पिचाई का नाम भले लोगों की जुबान पर है लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता है कि आईआईटी में पढ़ाई के दौरान सभी उनको पी. सुंदरराजन के नाम से जानते थे।
दो कमरों के मकान से निकल कर दुनिया की सबसे प्रमुख तकनीकी कंपनी के सीईओ तक का सुंदर का सफर किसी परीकथा से कम आकर्षक नहीं। अब हाल में उन्होंने चेन्नई में अपने माता-पिता के लिए करोड़ों की लागत वाला एक मकान खरीदा है।
आईआईटी खड़गपुर की हस्तियां -
आईआईटी खड़गपुर के मेटलर्जी विभाग से सुंदर की सफलता से पहले लंबे समय तक आईबीएम की रिसर्च डिवीजन के प्रमुख रहे प्रवीण चौधरी और वोडाफोन के सीआईओ रहे अरुण सरीन भी शामिल हैं।
गूगल का सीईओ बनने से पहले माइक्रोसाफ्ट के सीआईओ बनने की रेस में भी पिचाई का नाम शामिल था लेकिन बाद में उनकी जगह सत्य नडेला को चुना गया।
बीच में ट्विटर ने भी उनको अपने पाले में करने का प्रयास किया था लेकिन जानकारों के मुताबिक, गूगल ने 10 से 50 लाख मिलियन डालर का बोनस देकर उनको कंपनी में बने रहने पर सहमत कर लिया।
वर्ष 1972 में चेन्नई (तब के मद्रास) में जन्मे सुंदर के पिता ब्रिटिश कंपनी जीईसी में इंजीनियर थे। उनका परिवार दो कमरों के एक मकान में रहता था।
उसमें सुंदर की पढ़ाई के लिए कोई अलग कमरा नहीं था। इसलिए वे ड्राइंग रूम के फर्श पर अपने छोटे भाई के साथ सोते थे। घर में न तो टेलीविजन था और न ही कार।
इससे उनके परिवार की आर्थिक हैसियत का अनुमान लगाया जा सकता है लेकिन इंजीनियर पिता ने बचपन में अपने बेटे के मन में तकनीक के बीज बो दिए।
इसलिए तमाम अभाव भी सुंदर के आगे बढ़ने की राह में बाधा नहीं बन सके और महज 17 साल की उम्र में उन्होंने आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास कर खड़गपुर में दाखिला लिया।
कहा जाता है कि पूत के पांव पालने में नजर आ जाते हैं। इसे चरितार्थ करते हुए आईआईटी, खड़गपुर से अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई (1989-93) के दौरान सुंदर हमेशा अपने बैच के टॉपर रहे।
आईआईटी में सुंदर को पढ़ा चुके प्रोफेसर सनत कुमार राय बताते हैं, ‘मेटलर्जिकल एंड मैटेरियल साइंस की पढ़ाई के दौरान भी सुंदर इलेक्ट्रानिक्स के क्षेत्र में विभिन्न विषयों पर काम कर रहे थे। वह भी उस दौर में जब आईआईटी के पाठ्यक्रम में इलेक्ट्रानिक्स था ही नहीं।‘ तब भी सुंदर का पहला प्यार तो इलेक्ट्रानिक्स ही था।
आईआईटी के नेहरू हाल छात्रावास में रहने वाले सुंदर को याद करते हुए प्रोफेसर राय कहते हैं कि सुंदर बेहद सभ्य, विनम्र और मृदुभाषी हैं। वर्ष 1993 में फाइनल परीक्षा में भी अपने बैच में टॉप करने के साथ उन्होंने रजत पदक हासिल किया था। उसके बाद छात्रवृत्ति पाकर आगे की पढ़ाई के लिए वे स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय चले गए।
आईआईटी से निकलने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। विभिन्न कंपनियों में काम करते हुए उन्होंने कोई 11 साल पहले गूगल में नौकरी शुरू की थी।
पिचाई के सहपाठी और बाद में उनके साथ गूगल में आठ साल तक काम करने वाले सेजार सेनगुप्ता कहते हैं, ‘गूगल में ऐसा एक भी व्यक्ति मिलना मुश्किल है जो सुंदर को पसंद नहीं करता हो या उनसे प्रभावित नहीं हो।‘
उनके एक अन्य सहपाठी पी. सुब्रमण्यम बताते हैं, ‘सुंदर के चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती और हमलोग मजाक में उसे किताबी कीड़ा कहते थे।‘
गूगल का सीईओ चुने जाने के बाद अब सुंदर पिचाई का नाम भले लोगों की जुबान पर है लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता है कि आईआईटी में पढ़ाई के दौरान सभी उनको पी. सुंदरराजन के नाम से जानते थे।
दो कमरों के मकान से निकल कर दुनिया की सबसे प्रमुख तकनीकी कंपनी के सीईओ तक का सुंदर का सफर किसी परीकथा से कम आकर्षक नहीं। अब हाल में उन्होंने चेन्नई में अपने माता-पिता के लिए करोड़ों की लागत वाला एक मकान खरीदा है।
आईआईटी खड़गपुर की हस्तियां -
आईआईटी खड़गपुर के मेटलर्जी विभाग से सुंदर की सफलता से पहले लंबे समय तक आईबीएम की रिसर्च डिवीजन के प्रमुख रहे प्रवीण चौधरी और वोडाफोन के सीआईओ रहे अरुण सरीन भी शामिल हैं।
गूगल का सीईओ बनने से पहले माइक्रोसाफ्ट के सीआईओ बनने की रेस में भी पिचाई का नाम शामिल था लेकिन बाद में उनकी जगह सत्य नडेला को चुना गया।
बीच में ट्विटर ने भी उनको अपने पाले में करने का प्रयास किया था लेकिन जानकारों के मुताबिक, गूगल ने 10 से 50 लाख मिलियन डालर का बोनस देकर उनको कंपनी में बने रहने पर सहमत कर लिया।
पिचाई के बारे में ये खास बातें
अच्छे क्रिकेटर : हाई स्कूल क्रिकेट टीम में कप्तानी करते हुए तमिलनाडु राज्य का क्षेत्रीय टूर्नामेंट जीता |
सम्मान मिले : पिचाई को साइबल स्कॉलर और पामर स्कॉलर उपाधियों से सम्मानित किया जा चुका है |
मजबूत पेशेवर : कंसल्टेंट कंपनी मैकिन्जी में कई साल काम किया, 2004 में गूगल सर्च ज्वाइन की |
तेज याददाश्त : करीबी लोग 1984 के भूले हुए टेलीफोन नंबर पूछते हैं तो सुंदर आज भी बता देते हैं |
मृदुभाषी : अमेरिकी मीडिया में उन्हें मृदुभाषी, कम मशहूर और लैरी पेज के दाएं हाथ के रूप में बताया |
टीम समर्पण : मरिसा मेयर के साथ काम करते वक्त टीम के प्रति समर्पण दिखाया और खुद को साबित किया|
जबरदस्त प्रतिभा : प्रसिद्ध अमेरिकी कंपनी रबा इंक ने उन्हें सलाहकार बोर्ड में बतौर सदस्य मनोनीत किया |
क्रोम लांच किया : क्रोम वेब ब्राउजर लांच किया और साल भर में वेब बेस्ड क्रोम ओएस भी नेटबुक्स के लिए लांच किया |
गूगल एप्स व एंड्रायड संभाला : 2012 में गूगल एप्स को संभाला और साल भर में एंड्रायड का पदभार भी संभाल लिया |
स्मरणीय कार्य : जीमेल, गूगल मैप एप्स बनाए, गूगल के सभी उत्पादों के लिए एंड्रायड एप भी तैयार किए |
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